नवनीत दुबे। शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि कलमकार का आशय क्या है या फिर स्वतः आपके विवेक ने आपके मुखारविंद पर हंसी ला दी होगीघ् आशय स्पष्ट हो कि अपराधी प्रवृत्ति के लोगों में पुलिस का खौफ होता हैए बहुत हद तक बात सत्य है पर अपराधी की प्रवत्ति पर भी यहाँ नर्भरह ोताह कखौफह य ख निपान यवहार अपराध की दुनिया में नए.नए प्रवेश करने वाली युवाओं में पुलिस का खौफ होता है लेकिन सिर्फकुछ दिनों तक जहां अपराध की दुनिया में वह निरंतर वारदातों को अंजाम देने लगते हैं शनैः शनैः खौफ पतन की ओर अग्रसर होने लगता है समाचार पत्रों टीवी चैनलों में जैसे ही कुख्यात गैंगस्टर इस तरह के नाम छपी लगते हैं भाई की वजनदारी खुद ब खुद अपनी कीर्ति का बखान करती हैए खैर मुद्दे की बात पर आते हैं पुलिस और अपराधियों का याराना प्रमाण तो नहीं होता पर इस बात को नकारा भी नहीं जा सकता और इस याराने में सबसे अहम भूमिका सफेदपोशओ की भी होती है जो पुलिस और अपराधी प्रवृत्ति के सूरमा के बीच सेतु का काम करते हैं गौरतलब है पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी नितिन बैठक करके अपने अधीनस्थ को अपराध पर लगाम कसने अपराधियोंप रक ठोरक र्रवाईक रनेव विधिविरुद्ध असामाजिक कार्य करने वाले तत्वों पर अंकुश लगाने के आदेश देते हैं किंतु विडंबना ही है कि अपराधी प्रवृत्ति के लोग थाना प्रभारी से लेकर आरक्षक तक कुछ सिद्ध कर लेते हैं साहब की भरपूर सेवा कर अपने गैरकानूनी कृत्यों को बिना भय संचालित करते हैं अधिकांश थाना क्षेत्रों में अवैध शराब जुआ सट्टा मादक पदार्थों का संचालन और बिक्री धड़ल्ले से होती है लेकिन थाना प्रभारी महोदय की आंख वही देखती है जो यह अपराधी प्रवृत्ति के लोग दिखाना चाहते हैंए और ऐसा हो भी क्यों ना सत्ताधारी और राजनीतिक दिग्गजों के यह लोग विशेष चहेते जो होते हैं यहां तक राजनीति से जुड़े पदाधिकारी स्वयं दो नंबरी कार्यों में लिप्त हो जमकर पैसा कमाते हैं
और खाकी की अस्मिता को सम्मान देते हुए उनके हक की धनराशि इन तक पहुंचा देते हैं यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वरिष्ठ अधिकारियों की बैठकें कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है लेकिन सबका साथ सबका विकास की भावना है ह्रदय मैं गहराइयों तक अपना घर बना चुकी है हाल ही में संस्कारधानी जबलपुर के थाना प्रभारी नीरज वर्मा के ओमती थाना क्षेत्र के बदमाश माजिद मूसा से निकटतम संबंध होने की बात सामने आई जिसके मद्देनजर थाना प्रभारी को लाइन अटैच कर दिया गयाए अब विभागीय जांच की बात हो रही है हास्यास्पद ही है अंततः परिणीति क्या होनी है सर्वविदित है थाना प्रभारी के तीन सितारे जस के तस ही रहेंगे खानापूर्ति के लिए तबादला कर दिया जाए पर निलंबन की कठोर कार्रवाई नहीं होगी आखिर हो भी कैसे सकती है थाना प्रभारी के ऊपर भी किसी राजनीतिक दिक्कज का हाथ होगा मुद्दे की बात यह है कि पुलिस और अपराधियों का याराना कोई नई बात नहीं दांत काटी रोटी का रिश्ता बन जाता है चर्चा तो यहां तक होती है कि गैंगस्टर कुख्यातों से खाकी धारी समय समय पर अपना कामभीक रवातेर हतेह परच हे जमीनी मामले में कब्जा कर आना होगा खाली करा कर आना हो या फिर अन्य कार्य तभी तो अपराधी बेखौफ होकर कार्य को अंजाम देते हैं और यदि वरिष्ठओं का वादा दबाव पड़ा तो मामूली धारा लगाकर कहा जाता हैजाओ जेल हो आओ तीन.चार दिन में जमानत करवा दूंगा अब ऐसे में बात आती है कि आखिर क्यों पुलिस अपराधियों को संरक्षण देकर खाकी की अस्मिता को दागदार करती हैघ् और सफेद पोशो का दबाव किस हद तक इनकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है